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इन्द्र॑वायूऽइ॒मे सु॒ताऽउप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि ॥५६ ॥

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पद पाठ

इन्द्र॑वायूऽइ॒तीन्द्र॑वायू। इ॒मे। सु॒ताः। उप॑। प्रयो॑भि॒रिति॒ प्रयः॑ऽभिः। आ। ग॒त॒म्। इन्द॑वः। वा॒म्। उ॒शन्ति॑। हि ॥५६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:56


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्रवायू) बिजुली और पवन की विद्या को जाननेवाले विद्वानो ! तुम्हारे लिये (इमे) ये (सुताः) सिद्ध किये हुए पदार्थ हैं (हि) जिस कारण (इन्दवः) सोमादि ओषधियों के रस (वाम्) तुमको (उशन्ति) चाहते अर्थात् वे तुम्हारे योग्य हैं, इससे (प्रयोभिः) उत्तम गुण, कर्म, स्वभावों के सहित उनको (उप, आ, गतम्) निकट से अच्छे प्रकार प्राप्त होओ ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जिस कारण तुम लोग हमारे ऊपर कृपा करते हो, इसलिये सब लोग तुमको मिलना चाहते हैं ॥५६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

(इन्द्रवायू) विद्युत्पवनविद्याविदौ (इमे) (सुताः) निष्पादिताः (उप) (प्रयोभिः) कमनीयैर्गुणकर्मस्वभावैः (आ) (गतम्) समन्तात् प्राप्नुतम् (इन्दवः) सोमाद्योषधिरसाः (वाम्) युवाम् (उशन्ति) कामयन्ते (हि) यतः ॥५६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - इन्द्रवायू युष्मदर्थमिमे सुता पदार्थाः सन्ति हीन्दवो वामुशन्ति, तस्मात् प्रयोभिस्तानुपाऽऽगतम् ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यतो यूयमस्माकमुपरि कृपां विधत्थ, तस्माद् युष्मान् सर्वे प्राप्तुमिच्छन्ति ॥५६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! ज्यामुळे तुम्ही लोक आमच्यावर कृपा करता त्यामुळेच सर्व लोक तुमच्याजवळ येऊ इच्छितात.